राशि, उनके स्वामी,, शुभ रत्न, लग्नो
का विचार और फल, मित्र राशियाँ व् शत्रु राशियाँ, विभिन्न ग्रहों की मूल त्रिकोण राशियाँ
चन्द्र राशि जन्म कुण्डली में चन्द्रमा जिस राशि में
स्थित होता है, वह
राशि चन्द्र राशि होती है. इसे जन्म राशि के नाम से भी जाना जाता है. वैदिक
ज्योतिष में सभी ग्रहों में सबसे अधिक महत्व चन्द्र को
ही दिया गया है. इसे "नाम राशि" की संज्ञा भी दी जाती है.
क्योकि ज्योतिष के अनुसार बालक का नाम रखने का आधार यही चन्द्र राशि होती है. जन्म
के समय चन्द्र जिस नक्षत्र में स्थित होता है. उसके चरण के वर्ण से
आरम्भ होने वाला नाम व्यक्ति का जन्म राशि नाम निर्धारित करता है. आईये
चन्द्र राशि को समझने का प्रयास करते है.
१२ राशियों के नाम एवम उनके स्वामी की जानकारी निम्न है
---
मेष का स्वामी = मंगल ,
वृष का स्वामी = शुक्र ,
मिथुन का स्वामी = बुध ,
कर्क का स्वामी = चन्द्रमा ,
सिंह का स्वामी = सूर्य ,
कन्या का स्वामी -= बुध ,
तुला राशी का स्वामी = शुक्र,
वृश्चिक का स्वामी = मंगल ,
धनु का स्वामी = गुरु ,
मकर का स्वामी = शनि ,
कुम्भ का स्वामी = शनि ,
मीन का स्वामी = गुरु |
राशियों के १२ लग्नो का विचार और फल ------
१. तनु २. धन ३. सहज
४. सुख ५. पुत्र ६. शत्रु ७. स्त्री ८. मृत्यु
९. धर्म १० . कर्म ११. लाभ १२. व्यय |
मेष ----- मेष लग्न में जन्म लेने वाले व्यक्ति क्रोधी , स्वाभिमानी , धनवान , सही आचरण करने वाले होते है | उनकी अपने लोगो से विसंगति बनी रहती है | मगर वैभव शाली , पराक्रमी होते है | उन्हें जमीन के कार्यों में लाभ होता है | वे विदेशी भ्रमण करने वाले होते है |
उन्हें व्यापार
में खनिज , गैस , जमीन के कार्यों में तथा निर्माण में भवन , रोड , आकाश से सम्बंधित कार्यों में लाभ होता है |
वृष -- वृष लग्न वाले लोग बुद्धिमान प्रिय बोलने वाले शांत प्रकृति के , सभी के कार्यो को एक भाव में लेने वाले , संगीत प्रेमी मगर स्वाभिमानी तथा ज्यादा गंभीरता रखने वाले और लोगो को प्रभावित करने वाले तथा भोग की वस्तुओ पर कम ध्यान देने वाले होते है |
व्यापार में भोग विलासिता की वस्तुओ , खाद्यान्न और सफ़ेद वस्तुओ के व्यापार
में (जैसे दूध , दही , शक्कर , चावल )लाभ होता है | पानी के व्यापार
में भी लाभ होता है |काली वस्तुओ का लाभ होता है |
मिथुन -- मिथुन लग्न वाले कूटनीति का भरपूर लाभ लेने वाले , चतुर , होशियार , राजपक्ष से कार्यों में लाभ पाने वाले , विवादों से ज्यादा उलझने वाले , सभी को अच्छा मानने वाले ,सेना का गठन करने वाले , लोगो का आदर करने वाले रहते है |
व्यापार में लोहे व् खनिज के व्यापार
में तथा राजनीती में कुशल , सुन्दरता में और भोग के कार्यों में ज्यादा लिप्त होते है | पैसो को इकठ्ठा करने वाले होते है | झूठ का ज्यादा सहारा लेने वाले तथा मौके का लाभ पाने वाले रहते है |
कर्क लग्न -- कर्क लग्न वाले मन में ज्यादा विचार करने वाले , क्षणिक विचार देने वाले , क्रोधित , अस्थिर , दूसरों का हित करने वाले , चंचल , बुद्धिमान , संपत्ति को पाने वाले , सुख का भोग नहीं करने वाले चिंता युक्त होते है |
व्यापार -- लोहे का व्यापार करने वाले , दूध , दही , शक्कर , सफ़ेद वस्त्र का व्यापार करने वाले , शिक्षा में उन्नति करने वाले होते है | विदेश की यात्रा से लाभ उठाने वाले होते है | उन्हें पानी के पास निवास करने से ज्यादा लाभ होता है |
सिंह लग्न -- सिंह लग्न वाले व्यक्तियों को एक सूत्र में बांधने
वाले , अच्छे विचार वाले , अच्छी शिक्षा देने वाले , प्रतापी , स्वाभिमानी , नेतृत्व करने वाले , प्रशासनिक कार्यों में पूर्ण दक्षता का लाभ पाने वाले और परिवार में सभी का ध्यान रखने वाले , अपने अनुसार कार्यों को करने वाले रहते है |
व्यापार में लाभ --राजनीती में काफी लाभ लेने वाले जमीन के कार्यों में , खनिज , रेट गिट्टी , स्टेशनरी , बिजली , लोहे के उत्पादन , कम्पूटर में अग्रणी , सम्पूर्ण जीवन में सुखी रहते है | पैसो की ज्यादा चाह होने से परिश्रम २४ घंटे करते है |
कन्या लग्न --कन्या लग्न में जन्म लेने मेल शास्त्रों में कुशल भोग विलासिता में हमेशा लिप्त रहने वाले , स्त्रियों से ज्यादा सम्बन्ध रखने वाले , भाग्यशाली सभी गुणों से ओतप्रोत रहते है | सुन्दर , प्रिय बोलने वाले , कुशल , राजनितिज्ञ , झूठ बोलने में माहिर , चतुर होशियार होते है |
व्यापार
-- मेडिकल से सम्बंधित व्यापार में सफल , विदेश का पैसा लेने में कुशल , सौन्दर्य से ज्यादा पैसा कमाने वाले , लोहे से विशेष लाभ पाने वाले , टेक्नीकल शिक्षा से भी व्यापार में लाभ लेने में सक्षम होते है | पत्रकारिता के क्षेत्र में सफलता पाने वाले रहते है |
तुला लग्न -- इस में उत्पन्न व्यक्ति बुद्धिमान , अच्छे कार्यों से जीवन को सक्षम रखते हुए योग्यता में पूर्ण सभी कलाओं में कुशल होते है | बिजली और लोहे के कार्यों में काफी तरक्की पाने वाले जिस क्षेत्र में रहते है अपनी अलग पहचान बनाते रहते है | ये पानी के पास से ज्यादा तरक्की पाते है | टेक्नीकल शिक्षा में पूर्ण लाभ पाते है | राजनीती में पूर्ण पद को पाने वाले रहते है |
व्यापार
-- लोहा ,खनिज, बिजली , जमीन में विशेष लाभ पाते है | आकर्षित करके कार्यों को निकालने में सक्षम होते है | विदेश में ज्यादा व्यापार करते है |
वृश्चिक लग्न -- इस लग्न में जन्म लेने वाले पराक्रमी , शत्रुओं से विजय पाने वाले , सदैव आगे रहने वाले , चाहे जो क्षेत्र हो अपने परिवार में नाम कमाने वाले , चतुर , चाणक्य , राजनीती , शिक्षा , प्रशासन में प्रभाव रखने वाले , पति पत्नी का सुख पाने वाले रहते है |
व्यापार
-- इन्हें शिक्षा में , लोहे के कार्यों में , पानी का व्यापार करने वाले, भवन का निर्माण , भोग के कार्यों में लाभ होता है |वे राजनीती में लाभ पाने वाले , चाणक्य जैसी कूटनीति का हमेशा लाभ पाने वाले , कागज से पूर्ण लाभ पाने वाले रहते है |
धनु लग्न --इस में जन्म लेने वाले व्यक्ति महान , बुद्धिमान , निति और सलाह कार लोगो को विशेष लाभ देने वाले , संसार में पूज्य और सम्मान पाने वाले , अपने परिवार में श्रेष्ठ , कोमल वाणी , परिवार का पालन करने वाले , राजनितिज्ञ ज्यादा होते हुए भी विद्वान् , सभी प्रकार की जानकारी रखने वाले , स्वयं पर विश्वास करने वाले रहते है |
व्यापार
-- शिक्षा , लोहा , सलाहकार में लाभ पाने वाले , धार्मिक कार्यों से लाभ पाने वाले , खनिज उत्पादन करने वाले , विदेश से पैसा कमाने वाले होते है |
मकर लग्न --इसमें जन्म लेने वाले सुख से दूर रहते है , मन में ज्यादा क्रोध बना रहता है | स्वाभिमान के कारण वैवाहिक सुख नहीं मिलता है | अपने अनुसार कार्यों को करते है | संतान से सुख नहीं मिलता है | आलसी होते है , दूसरो का अच्छा नहीं सोचते है , खर्च ज्यादा करते है , दिखावा ज्यादा करते है , मगर स्वयं के कार्य में पूर्ण दक्ष होते है |
व्यापार
-- लोहे में उत्पादन , घर का सुख मिलता है | खनिज से लाभ होता है |राजनीती में लाभ नहीं मिलता है |आकाश से सम्बंधित कार्यो में लाभ होता है | उसमे सक्षम भी होते है | बिजली के व्यापार में लाभ हमेशा मिलता है |
कुम्भ --इस लग्न में जन्म लेने वाले व्यक्तियों के दूसरी स्त्रियों से सम्बन्ध रहते है | बुद्धिमान साहसी , ज्ञानी , दयालु होते है | प्रसन्न रहते है इसलिए हमेशा सुखी रहते है | भोग विलासिता में ज्यादा ध्यान रहता है | जो चाहे वैसा कार्य कर सकते है इतना पावर रहता है |
व्यापार में लाभ -- लोहा , पानी , खाद्यान्न , होटल के व्यापार से काफी लाभ , शिक्षा में टेक्नीकल से लाभ , सौन्दर्य से भी लाभ होता है |
मीन--
मीन लग्न में जन्म लेने वाले सुवर्ण के शौक़ीन होते है | परिवार का सहयोग हमेशा करने वाले होते है | ज्यादा सोचने वाले व् चिंता करने वाले होते है इसलिए देरी भी हो जाती है | पति पत्नी का पूर्ण सुख लेने वाले भी होते है | संतानों का सुख हमेशा रहता है | दानी होते है | परोपकार में ज्यादा विश्वास करने वाले होते है | कम आयु होती है |
व्यापार में लाभ -- शिक्षा में ज्यादा लाभ होता है | लोहे के कार्यों में भी लाभ होता है | खनिज , उर्जा , बिजली , कोयले से भी पूर्ण लाभ होता है | कोई भी कार्य में पूर्ण दक्ष होते है |
मेष राशि का
स्वामी ग्रह मंगल माना जाता है। भगवान श्री गणेश को मेष राशि का आराध्य देव माना
जाता है।
शुभ रत्न: मूंगा, शुभ
रुद्राक्ष: तीन मुखी रुद्राक्ष,
वृषभ का राशि का
स्वामी ग्रह शुक्र है। इस राशिवालों के लिए शुभ दिन शुक्रवार और बुधवार होते हैं। कुलस्वामिनी को वृषभ राशि का
आराध्य माना जाता है।
शुभ रत्न: हीरा, शुभ
रुद्राक्ष: छह मुखी रुद्राक्ष,
मिथुन राशि का
स्वामी ग्रह बुध होता है। इस राशि के जातक बेहद समझदार होते हैं। मिथुन राशि के
आराध्य देव कुबेर होते हैं।
शुभ रत्न: पन्ना, शुभ
रुद्राक्ष: चार मुखी रुद्राक्ष,
कर्क राशि का
स्वामी ग्रह चंद्रमा है। भगवान शंकर को कर्क राशि का आराध्य देव माना जाता है।
शुभ रत्न: मोती, शुभ
रुद्राक्ष: दो मुखी रुद्राक्ष,
सिंह राशि का स्वामी ग्रह सूर्य है। इस राशि के लोग किसी के सामने झुकना
नहीं पसंद नहीं करते हैं। सिंह राशि के आराध्य देव
भगवान सूर्य होते हैं।
सिंह राशि के लिए शुभ रत्न: माणिक्य,
शुभ रुद्राक्ष: एक मुखी रुद्राक्ष,
कन्या राशि के जातक बेहद धार्मिक प्रवृत्ति के होते हैं। मान्यता है कि कन्या
राशि के आराध्य देव कुबेर जी होते हैं। शुभ
रत्न: पन्ना, शुभ रुद्राक्ष: चार मुखी रुद्राक्ष,
तुला राशि के जातक भोले स्वभाव के होते हैं। कुलस्वामिनी को तुला राशि का
आराध्य माना जाता है।
शुभ रत्न: हीरा, शुभ रुद्राक्ष: छह मुखी रुद्राक्ष,
वृश्चिक राशि का स्वामी ग्रह मंगल है। वृश्चिक राशि के जातकों के आराध्य देव गणेश
जी होते हैं।
शुभ रत्न: माणिक्य, शुभ रुद्राक्ष: तीन मुखी रुद्राक्ष,
धनु राशि का स्वामी ग्रह
"गुरु" को माना जाता है। धनु राशि के आराध्य देव "दत्तोत्रय"
होते हैं।
शुभ रत्न: पुखराज, शुभ रुद्राक्ष: पांच मुखी रुद्राक्ष,
मकर राशि का स्वामी ग्रह शनि होता है। भगवान शनि देव और हनुमान जी को मकर
राशि का आराध्य देव माना जाता है।
शुभ रत्न: नीलम, शुभ रुद्राक्ष: सात मुखी रुद्राक्ष,
कुंभ राशि के जातक बेहद गुस्सैल किस्म के होते हैं। भगवान शनि देव और हनुमान
जी को कुंभ राशि का आराध्य देव माना जाता है।
शुभ रत्न: नीलम, शुभ रुद्राक्ष: सात मुखी रुद्राक्ष,
मीन राशि के जातक बेहद शांत स्वभाव के और मेहनती होते हैं। मीन राशि के
आराध्य देव "दत्तोत्रय" होते हैं।
शुभ रत्न: मूंगा, शुभ रुद्राक्ष: पांच मुखी रुद्राक्ष,
भारतीय अंक शास्त्रीयों के अनुसार
अंक एवं उनके ग्रह, वार, रंग, राशि, की टेबल :-
अंक
|
ग्रह
|
रंग
|
शब्द
|
दिन/वार
|
राशि
|
1,4
|
सूर्य
|
लाल
|
A,I,J,Y,Q,D,M,T
|
रविवार
|
सिंह
|
2,7
|
चन्द्र
|
संतराई
|
B,K,C,R,O,Z
|
सोमवार
|
कर्क
|
9
|
मंगल
|
पीला
|
TH,TZ,
|
मंगलवार
|
वृश्चिक , मेष
|
5
|
बुध
|
हरा
|
E,N
|
बुधवार
|
कन्या , मिथुन
|
3
|
गुरु
|
हल्का नीला
|
G,L,S
|
गुरूवार
|
धनु, मीन
|
6
|
शुक्र
|
गहरा नीला
|
U,V,W,X
|
शुक्रवार
|
वृषभ , तुला
|
8
|
शनि
|
पर्पल
|
F,P,H,PH,
|
शनिवार
|
मकर कुम्भ
|
पश्चिमी अंक शास्त्रियों के अनुसार
अंक एवं उनके ग्रह, वार, रंग, राशि, शब्द, आदि की टेबल :-
अंक
|
ग्रह
|
रंग
|
शब्द
|
दिन/वार
|
राशि
|
1,
|
सूर्य
|
लाल
|
A,I,J,Y,Q,
|
रविवार
|
सिंह
|
2
|
चन्द्र
|
संतराई
|
B,K,C,R,
|
सोमवार
|
कर्क
|
3
|
बुध
|
हल्कानीला
|
G,L,S
|
बुधवार
|
कन्या , मिथुन
|
4
|
राहु
|
लाल
|
D, M, T
|
रविवार
|
सिंह
|
5
|
गुरु
|
हरा
|
E,N
|
गुरूवार
|
धनु, मीन
|
6
|
शुक्र
|
गहरा नीला
|
U,V,W,X
|
शुक्रवार
|
वृषभ , तुला
|
7
|
केतु
|
संतराई
|
O, Z
|
सोमवार
|
कर्क
|
8
|
शनि
|
पर्पल
|
F,P,H,PH,
|
शनिवार
|
मकरकुम्भ
|
9
|
मंगल
|
पीला
|
TH,TZ,
|
मंगलवार
|
वृश्चिक , मेष
|
राशि चक्र
:
सुर्यपथ
आकाशीय गंगा में वह अंडाकार रास्ता है जिसमें हमें सूर्य गतिमान प्रतीत होता है | सुर्यपथ बारह सामान भागों में विभक्त किया गया है , और प्रत्येक भाग 30 अंश का है | इन बारह भागों के नाम रखे गए हैं और
प्रत्येक भाग को राशी कहा जाता है |सूर्य पथ में कुल 360 अंश हैं
| राशी चक्र सूर्य पथ के दोनों ओर नौ
अंश की विस्तृत आकाशीय पट्टी है जिसमें बारह राशियाँ
हैं | पहली राशी मेष ० अंश से 30 अंश तक है और दूसरी राशी 30 अंश से ६० अंश तक है , इसी प्रकार 360 अंश तक बारह राशियाँ क्रमशः स्थापित
मानी जाती हैं | पृथ्वी की दो गतियाँ हैं | एक सूर्य के चरों ओर जो 360 अंश दिन में एक चक्र पूरा करती है और
दूसरी गति पृथ्वी की अपनी धुरी पर है जो २४ घंटे में अपना चक्र पूरा करती है | पृथ्वी का प्रत्येक भाग क्रमशः
सुर्यपथ में स्थित राशी चक्र के सन्मुख आता है | भारतीय
ज्योतिष भविष्य कथन के लिए स्थिर
राशी चक्र का प्रयोग करते हैं |
राशिचक्रमें
विभिन्न मानव जीवधारी (कन्या), पशु जीवधारी (शेर), जलचर जीवधारी (मछली), और जड़ चिन्हों जैसे तराजू(तुला), घड़ा(कुम्भ) आदि आकृति के १२
बारह तारा समूह हैं | इन्हीं को १२ राशियाँ कहा जाता है | प्रथम भाव में जो राशि आती है वह जन्मलग्न तथा जिस राशि में चन्द्र ग्रह स्थापित
होता है वह जन्म राशि कहलाती है | व्यक्ति का नाम जन्मराशी के अक्षरों में से एक अक्षर के
अनुसार रखा जाता है | एक राशि नौ अक्षरों एवं सवादो २.२५
नक्षत्रों की होती है| एक नक्षत्र में चार चरण व् चार अक्षर होते हैं | नाम के प्रथम अक्षर के आधार पर अपनी
नाम राशि जान सकते हैं | बारह राशियाँ निम्न प्रकार से हैं :- १. मेष राशि २. वृष राशि ३. मिथुन राशि
४. कर्क राशि ५. सिंह राशि ६. कन्या राशि ७. तुला राशि ८. वृश्चिक राशि ९. धनु राशि १०. मकर राशि ११.
कुम्भ राशि १२. मीन राशि| ये सभी राशियाँ हमारे शरीर के
अलग-अलग अंगों को प्रभावित करते हैं | यह ज्योतिष शास्त्र का प्रथम स्तम्भ
है | राशियाँ संख्या में बारह होती हैं | इनका प्रतिनिधित्व जन्म कुंडली में
संख्या के रूप में किया जाता है |
राशियों
के नाम उनकी प्रतिनिधित्व संख्या व् उनके स्वामी के नाम निम्न प्रकार से हैं |
संख्या
नाम
स्वामी
१.
मेष
मंगल
२.
वृषभ
शुक्र
३.
मिथुन
बुध
४.
कर्क
चन्द्र
५.
सिंह
सूर्य
६.
कन्या
बुध
७.
तुला
शुक्र
८.
वृश्चिक मंगल
९.
धनु
गुरु
१०.
मकर
शनि
११.
कुम्भ
शनि
१२.
मीन
गुरु
राशियाँ
अपने स्वामियों की शक्ति, स्वरुप व् स्थिति के अनुसार
जन्म कुंडली में गुण व् दोष ग्रहण करती हैं | राशियों
का महत्वपूर्ण योग यह है की यह ज्योतिष
के विभिन्न स्तंभों को आपस में जोड़ने की कड़ी का काम करती है | इनके द्वारा हमें ज्ञात होता है की कुंडली में किस भाव
का कौन सा गृह स्वामी है |
मित्र राशियाँ व् शत्रु राशियाँ
मित्र राशियाँ : जब ग्रह
अपनी किसी मित्र राशी को ग्रहण करते हैं | उस स्थिति में ग्रह अपने
आप को परिणाम देने में अत्यधिक स्वतंत्र व् समर्थ पाते हैं , परन्तु ग्रह प्रबल अवस्था में होने चाहिए | सूर्य ,चन्द्र ,मंगल मित्र गृह हैं तथा गुरु उसका सम है |
शनि , बुध , राहू तथा
केतु मित्र ग्रह हैं तथा शुक्र शुक्र उनका सम है |
शत्रु राशियाँ : जब ग्रह
अपनी किसी शत्रु राशी को ग्रहण करते हैं | तब ऐसी स्थिति में
ग्रह अपने आप को अपनी सामर्थ्यानुसार फल देने में कठिनाई अनुभव करते हैं | परन्तु यदि कोई ग्रह अपनी शत्रु राशी में स्थित होकर अपनी मूल त्रिकोण
राशी पर दृष्टी डालता है तो ऐसी अवस्था में यह नियम लागू नहीं होता है तथा ग्रह फल
देने में अपने आप को सीमित नहीं करते हैं | विभिन्न ग्रहों
की मूल त्रिकोण राशियां निम्न रूप से हैं :
ग्रह
मूल त्रिकोण राशी
सूर्य
सिंह
चन्द्र
कर्क
मंगल
मेष
बुध
कन्या
गुरु
धनु
शुक्र
तुला
शनि
कुम्भ
ग्रहों की स्थिति की गणना हम ज्योतिर्विज्ञान के नियमों
की सहायता से करते हैं |
भावों की प्रकृति : केंद्र तथा त्रिकोण शुभ भाव है | दुस्थान अशुभ भाव है तथा तटस्थ भावों पर भी शुभ भाव जैसा ही विचार करना चाहिए | तटस्थ भाव अपने योगदान से आश्चर्य जनक
व् सकारात्मक परिणाम प्रदान करते हैं | लग्न से षष्ठ या छटवें,आठवें तथा बारहवें भाव में अशुभ कहलाते हैं |इन भावों के अतिरिक्त अन्य सभी भाव शुभ भाव कहलाते हैं |
लग्न
क्रियात्मक अशुभ ग्रह
मेष
बुध
वृषभ
मंगल, शुक्र,
एवं गुरु
मिथुन
कोई भी नहीं
कर्क
गुरु और शनि
सिंह
चन्द्रमा
कन्या
सूर्य, शनि, एवं मंगल
वृश्चिक
शुक्र
एवं मंगल
धनु
चन्द्रमा
मकर
सूर्य एवं गुरु
कुम्भ
चन्द्र एवं बुध
मीन
सूर्य , शुक्र एवं शनि
भाव स्थान व उनके प्रकार
भाव स्थान व् उनके प्रकार
भाव अथवा स्थान :भाव या स्थान संख्या में बारह होते हैं और प्रत्येक भाव में एक राशी
का निवास होता है | किसी भी भाव में जिस राशि का निवास होता है उस राशी का स्वामी उस भाव का
स्वामी कहलाता है | यह भाव जीवन के विभिन्न पहलुओं , शारीरिक , अवयवों व् नातेदारों इत्यादि को इंगित
करते हैं |
प्रथम भाव : स्वास्थ्य , ख़ुशी , सामजिक स्तर , चरित्र , व्यक्तित्व , खुशहाली
, इक्छायें व् उनकी पूर्ती इत्यादि |
द्वितीय भाव : धन, कुटुंब ,
भाग्य, समकिज स्थिति, अमूल्य
रत्न, सोना व् चांदी, वाणी तथा दृष्टी
इत्यादि |
तृतीय भाव : छोटे भाई बहिन , साहस , पराक्रम , छोटी यात्राएं , माता पिता की दीर्घायु , लेखन व् सामाजिक व्यवहार, इत्यादि |
चतुर्थ भाव : माता , वाहन , ग्रह शान्ति, शिक्षा ,
संपत्ति , मन अधिकार इत्यादि |
पंचम भाव : ज्ञान , आकस्मिक लाभ , संतान, ज्ञान
प्राप्ति,की क्षमता , आत्मिक
प्रवृत्तियां , मन का झुकाव , विचार
इत्यादि |
षष्ठ भाव : रोग, शत्रु,
मामा, कर्ज, कर्मचारी,कोर्ट कचेरी, झगड़े ,इत्यादि |
सप्तम भाव : पति-पत्नी ,साझेदारी , वैहाहिक जीवन,
विदेश में घर, यात्रा, मृत्यु,
इत्यादि,
अष्टम भाव : दीर्घायु, विरासत, दुर्घटना , रुकावटें , हानि,
दुर्भाग्य, अपवित्रता , निराशा,
इत्यादि |
नवम भाव : पिता, भाग्य, आत्मिक ज्ञान , मन का
झुकाव, पूर्व जन्म , विदेश यात्रा,
शिक्षा, तथा तीर्थ यात्राएं इत्यादि |
दशम भाव : व्यवसाय , सामाजिक स्तर , जीवन कर्म, चरित्र,
आकांक्षाएं , अगला जन्म , पुत्र, संतान, इत्यादि |
एकादश भाव : लाभ , मित्र, बड़े भाई बहिन, आय,
सौभाग्य, सफलता इत्यादि |
द्वादश भाव : व्यव, हानि, मृत्यु , विदेश में जीवन,
जीवन में रुकावटें , परिवार से अलगाव, जेल व् सय्या खुश इत्यादि |
भाव स्थान :
केंद्र भाव : जन्म कुंडली में प्रथम , चतुर्थ , सप्तम तथा दशम भाव
केंद्र स्थान कहलाते हैं |
त्रिकोण भाव : पंचम तथा नवम भाव त्रिकोण कहलाते हैं | प्रथम भाव को भी त्रिकोण भाव मानकर विचार करते हैं |
दुस्थान भाव : षष्ठ , अष्टम तथा द्वादश भाव त्रिकोण या दुस्थान भाव कहलाते हैं |
भावों की प्रकृति : केंद्र तथा त्रिकोण शुभ भाव हैं | तथा दुस्थान अशुभ भाव कहलाते हैं |तटस्थ भावों पर भी शुभ भाव जैसा ही विचार करना चाहिए | तटस्थ भाव अपने योगदान से आश्चर्य जनक व् सकारात्मक परिणाम प्रदान करते
हैं |लग्न से षष्ठ , अष्टम तथा द्वादश
अशुभ भाव कहलाते हैं | इन भावों के अतिरिक्त अन्य सभी भाव
शुभ भाव कहलाते हैं |
लग्न
क्रियात्मक
अशुभ ग्रह
मेष
बुध
वृषभ
मंगल, शुक्र, एवं
गुरु
मिथुन
कोई भी नहीं
कर्क
गुरु और शनि
सिंह
चन्द्रमा
कन्या
सूर्य, शनि, एवं मंगल
वृश्चिक
शुक्र एवं मंगल
धनु
चन्द्रमा
मकर
सूर्य एवं गुरु
कुम्भ
चन्द्र एवं बुध
मीन
सूर्य , शुक्र एवं शनि
ग्रह तथा उनके प्रकार
ग्रह : नव ग्रह : सूर्य से
दूरी अनुसार क्रमशः बुध, शुक्र, पृथ्वी,
मंगल, गुरु, शनि,
अरुण, वरुण, और यम,
हैं इनमें अरुण वरुण व् यम पृथ्वी से ज्यादा दूर होने के कारण उनका प्रभाव
बहुत कम होता है इसलिए इन्हें भारतीय ज्योतिष में इन्हें छोड़ दिया गया है |
चन्द्र पृथ्वी के नजदीक व् उपग्रह होने के कारण इसको नवग्रह में शामिल
किया गया है | सूर्य का प्रथ्वी
पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है इस प्रकार से सूर्य, चन्द्र,
मंगल, बुध, गुरु,
शुक्र, शनि, ग्रह हैं |
पृथ्वी और चन्द्र के कटान बिन्दुओं को
राहु व् केतु के नाम से छाया ग्रह के मान्यता दी गई है| अतः
इस प्रकार से नव ग्रह होते हैं| नव ग्रह निम्न प्रकार से हैं : १. सूर्य २. चन्द्र ३. मंगल ४. बुध ५. गुरु ६.
शुक्र ७. शनि ८. राहु ९. केतु इस प्रकार से नौ ग्रह होते हैं | ग्रह अपनी दशा में अपने द्वारा इंगित पहलुओं को अपनी शक्ति के अनुसार आगे
बढाने की योग्यता रखते हैं | ग्रह हमें उस भाव के फल के बारे में भी ज्ञान कराते हैं | जिस
भाव में उनकी स्थिति होती है और जिस घर के वह स्वामी होते हैं | सूर्य और चन्द्रमा केवल एक – एक राशि के स्वामी होते हैं , जबकि मंगल , बुध , गुरु, शुक्र, व् शनि, दो राशियों का प्रतिनिधित्व करते हैं | इन दो राशियों में से एक राशि इन ग्रहों
की मूल त्रिकोण राशि होती है , जिस पर ग्रह का विशेष फल
केन्द्रित रहता है | जिस भाव में
यह मूल त्रिकोण राशि होती है उसी भाव का स्वामी उस ग्रह को मुख्य रूप से माना जाता
है |
स्थान ग्रह स्वामी :ग्रह स्वामी
का अर्थ है की वह ग्रह जिसकी राशि में कोई अन्य ग्रह स्थित हो | उदाहरण के लिए यदि मंगल तुला राशि में हो तो शुक्र जो की तुला राशि का स्वामी
है वह मंगल का योजक कहलायेगा | यदि ऐसी अवस्था में शुक्र की शक्ति क्षीण हो तो मंगल की शक्ति भी क्षीण हो जायेगी |
निर्बल ग्रह :जो ग्रह बाल्य अवस्था , वृद्धा अवस्था , अस्त अवस्था , नीच अवस्था, अशुभ भाव में स्थित , नीच नवांश में स्थित हों उनकी शक्ति क्षीण हो
जाती है | जो ग्रह अशुभ ग्रहों द्वारा सम्बंधित हों वह
पीड़ित कहलाते हैं , तथा पीड़ित ग्रहों की शक्ति भी
क्षीण हो जाती है | शक्ति हीन स्थान ग्रह
स्वामी भी ग्रहों की शक्ति को क्षति पंहुचाता है |
प्रबल ग्रह :ऐसे ग्रह जो युवा अवस्था में हों तथा
शक्ति हीन न हों , जिनके ग्रह स्वामी शक्तिहीन न हों ,
शुभ भावों में स्थित हों , अशुभ ग्रहों से
संयुक्त अथवा दृष्ट न हों तथा शुभ ग्रहों द्वारा दृष्ट या संयुक्त हो , प्रबल ग्रह कहलाते हैं | प्रबल ग्रह जीवन में अपने अधिपत्य द्वारा शासित कारक
तत्वों की रक्षा एवं विकास करते हैं |
भावों के कारक तत्त्व ग्रह
ग्रह
भाव
सूर्य
प्रथम , नवम तथा दशम भाव
चन्द्रमा
चतुर्थ
भाव
मंगल
तृतीय
तथा नवम भाव
बुध
षष्ठ तथा दशम भाव
गुरु
द्वितीय , पंचम, नवम, तथा एकादश भाव
शुक्र
चतुर्थ , सप्तम तथा
द्वादश भाव
शनि
अष्टम भाव
शुभ ग्रह :क्योंकि
फलित ज्योतिष का अस्तित्व ग्रहों का शुभ और अशुभ प्रभाव निर्धारित करता है , इसलिए इस पर ध्यान देना अत्यधिक आवश्यक है | जिन
ग्रहों की मूल त्रिकोण राशियाँ लग्न से शुभ भावों में होती हैं , वह ग्रह जातक को शुभ फल प्रदान करते हैं |
अशुभ ग्रह :जिन ग्रहों की मूल त्रिकोण राशियाँ लग्न से अशुभ भावों में होती
हैं वह अशुभ फल प्रदान करते हैं | छठा , आठवां, व् बारहवां भाव
जन्म कुंडली में अशुभ भावों के नाम से जाने जाते हैं |
ग्रह
एवं उनका बल तथा उनके प्रभाव im
ग्रहों का बल :-
ग्रहों का बल ६(छ:) प्रकार का होता है १. स्थान बल २. दिग्बल अथवा
दिशा बल ३. काल बल अथवा समय बल ४. नैसर्गिक बल ५.
चेष्टा बल ६. द्रग्बल अथवा द्रष्टि बल |
स्थान बल :व्यक्ति की कुंडली में उच्च राशि में मूल त्रिकोण में, स्वग्रही तथा मित्र
राशि में स्थित गृह को स्थान बली कहा अथवा माना जाता है
|
दिग्बल अथवा दिशा बल : बुध तथा गुरु लग्न में, चन्द्र एवं शुक्र
चतुर्थ भाव या स्थान में शनि सप्तम में, मंगल दशम भाव अथवा स्थान में होतो दिग्बली अथवा दिशाओं का बली माना जाता है |
काल बल : व्यक्ति का रात्रि में जन्म हो तो चन्द्र, मंगल एवं शनि तथा
दिन में जन्म हो तो सूर्य, बुध, तथा
शुक्र, काल बली माने जाते हैं |
मतान्तर से बुध को दिन व् रात्रि दोनों में ही काल बली माना जाता है
|
नैसर्गिक बल : शनि, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, चन्द्र चेष्टा बल तथा सूर्य, ये उत्तरोत्तर बली हैं, इन्हीं को नैसर्गिक बली कहा
जाता है |
चेष्टा बल : मकर, कुम्भ,
मीन, मेष, वृष, मिथुन, इन छ: राशियों में से किसी में होने से सूर्य
चेष्टा बली होता है | चन्द्र भी उक्त छ: राशियों में से होने से चेष्टा बली होता है | मंगल,बुध,गुरु,शुक्र,शनि,इनमें से जो भी चन्द्रमा के साथ हो वह चेष्टा
बली होता है |
दृग्बल या द्रष्टि बल : जन्म कुंडली में जब किसी क्रूर गृह
पर शुभ गृह की द्रष्टि पड़ती है तब वह क्रूर गृह भी शुभ गृह की द्रष्टि पाकर
द्रग्बली हो जाता है
दृष्टी :ग्रहअपनी स्थिति से अन्य ग्रहों को जो नियमित दूरी पर हों पर दृष्टी
डालते हैं | दृष्टी का
प्रभाव शुभ भी हो सकता है और अशुभ भी | यह दृष्टी डालने वाले ग्रह के स्वभाव पर निर्भर करता है | ग्रहों की दृष्टी पूर्ण व् आंशिक होती है परन्तु हम केवल पूर्ण दृष्टी का प्रयोग करते हैं | सभी ग्रह
अपने स्थान से सातवें भाव में स्थित ग्रहों को पूर्ण दृष्टी से देखते हैं |
इसके साथ – साथ कुछ
ग्रह अतिरिक्त विशेष पूर्ण दृष्टी रखते हैं | शनि अपने स्थान
व् तीसरे तथा दसवें स्थान पर दृष्टी डालता है | मंगल
अपने स्थान से चौथे और आठवें स्थान पर दृष्टी डालता है | ब्रहस्पति
, राहू और केतु अपने स्थान से पांचवें और नवें स्थानों पर दृष्टी डालते हैं | दृष्टी का प्रभाव भी हम तभी मानेंगे जब दृष्टी डालने वाले और दृष्ट ग्रह
के भोगांश में अंशों का अंतर पांच अंश या पांच अंश से
कम हो |
संयुक्त ग्रह युति : जब दो और ज्यादा ग्रहों के भोगांश का आपस में अंतर ५ अंश से कम हो तो
उन ग्रहों की आपस में संधि मानी जाती है | यदि यह
अंतर ५ अंश से अधिक हो तो उसका विशेष प्रभाव नहीं होगा | उदाहरनतया
यदि सूर्य , बुध और शुक्र किसी
राशि में क्रमशः २० अंश , २३ अंश , और
१९ अंश पर हों तो यह तीनों ग्रह आपस में संयुक्त हैं या इनकी ग्रह युति है | जब अंतर २ अंश या इससे कम हो तो हम उसे घनिष्ठ रूप से सयुंक्त मानते हैं |
ग्रहों के भोगांश : ग्रहों
के भोगांश अंशों में राशि चक्र की पृष्ठभूमि में नापा जाता है , और इसका उपयोग
ग्रहों की विभिन्न राशियों में स्थित ग्रहों के आपसी
सम्बन्ध और ग्रहों की शक्ति जांचने के लिए किया जाता है |
शुभ
एवं अशुभ ग्रह im
ग्रहों
की स्थिति एवं उनका प्रभाव
गृह एवं उनके स्थान अथवा भाव तथा उनके प्रभाव :-
सूर्य – प्रथम
भाव, नवम भाव, दशम भाव, अथवा स्थान - सूर्य प्रथम भाव का स्वामी होता है एवं प्रथम भाव से शरीर ,रंग ,रूप,स्वभाव, ज्ञान,सुखदुःख,ताकत,बल,स्वास्थ्य,दादी, नाना, पिता, राज्य, हुकूमत, पद प्राप्ति, पदोन्नति, कर्म व्यापार, ट्रान्सफर, पूर्व
जन्म, समुद्र यात्रा, गुरु-आचार्य,
साला-साली, तीर्थ-यात्रा, भाई की पत्नी, जीजा, दोहता-दोहती,
पौत्र- पौत्री ,भाग्य
धर्म सास आदि के बारे में जानकारी मिलती है| स्थिर कारक : राजत्व, रक्तवस्त्र, माणिक्य,
राज्य, वन, क्षेत्र, पर्वत, पिता, आदि |
सूर्य
आत्मा एवं पित्त का अधिष्ठाता है | सूर्य पुरुष गृह है एवं क्रूर गृह है तथा
सूर्य आद्रा,पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा नक्षत्रों में बलवान होता है | सूर्य का अधिकार
क्षेत्र हड्डी एवं सिर प्रदेश होता है तथा सूर्य का विशेष
प्रभाव २२ से २४ वर्ष की उम्र में ज्यादा होता है |
चन्द्र – चतुर्थ भाव अथवा स्थान – चन्द्र
चतुर्थ भाव का स्वामी होता है एवं चतुर्थ भाव से हम माता, सुख,
मकान, जमीन,जायदाद,
धन, खेतीबाड़ी, मोटरकार,
आभूषण वस्त्र, पानी, नदी,
पुल, स्वसुर, सुगंध,
गाय, भैंस, आदि के बारे
में जानकारी मिलती है | स्थिर कारक : माता, मन, पुष्टि, गंध, रस, ईख, गेंहूं, प्रथ्वी, क्षार,
चांदी, ब्राहमण, कपास,
आदि | चन्द्र मन एवं वात कफ का अधिष्ठाता है |
चन्द्र
स्त्री गृह है एवं चन्द्र अगर कमजोर होतो पाप गृह तथा अगर बली होतो शुभ गृह होता है,
चन्द्र मघा, पूर्वा-फाल्गुनी, उत्तरा-फाल्गुनी, नक्षत्रों में बलवान होता है |चन्द्र का हमारे शरीर में रक्त व् मुख के आसपास प्रभाव होता है तथा चन्द्र
का २४ से २५ वर्ष की उम्र में ज्यादा प्रभाव होता है |
मंगल – तृतीय एवं छठवे भाव अथवा स्थान – मंगल तृतीय एवं छठवे भाव का स्वामी होता है, एवं तृतीय भाव से हम पराक्रम, भाई-बहन, छोटा भाई,
नौकर, छोटी यात्रा, दाहिना
कान, हिम्मत, वीरता, शक्ति,रोग, शत्रु, सौतेली माँ, झगड़े-टंटे, मुक़दमा,कर्ज, पानी से डर, जानवर से भय,
मामा-मौसी, आदि का ज्ञान होता है| स्थिर कारक
: मकान, भूमि, हिम्मत,
वर्ण, अग्नि, रोग,चोरी, शील, भाई, राज्य, शत्रु, आदि | मंगल हिम्मत एवं
कफ का अधिष्ठाता व कारक होता है | मंगल पुरुष
एवं पाप गृह है, तथा मंगल हस्त,चित्र,
स्वाती, विशाखा, नक्षत्रों
में बलवान होता है | मंगल का हमारे शरीर में मज्जा व् मुख के आस पास अधिकार होता है तथा मंगल २८ से ३२ वर्ष की
उम्र ज्यादा प्रभावी होता है |
बुध – चतुर्थ एवं दसम भाव अथवा स्थान – बुध चतुर्थ एवं दशम भाव का स्वामी होता है, तथा चतुर्थ भाव से
हम माता, सुख, मकान, जमीन, जायदाद, धन, खेतीबाड़ी, मोटरकार, आभूषण
वस्त्र, पानी, नदी, पुल, स्वसुर, सुगंध, गाय, भैंस,आदि के बारे में
जानकारी मिलती है एवं दशम भाव से हमें पिता, राज्य, हुकूमत, पद प्राप्ति, पदोन्नति,
कर्म व्यापार,ट्रान्सफर, पूर्व जन्म, सास आदि के बारे में जानकारी होती है |
स्थिर
कारक -ज्योतिष, गणित, डाक्टरी, बुद्दि, बीमा एजेंसी,शिल्प विधा, नर्त्य, हास्य,
लक्ष्मी, व्यापार, गाना,
लेखन, आदि | बुध वाणी एवं वात – पित्त – कफ का अधिष्ठाता व् कारक है | बुध नपुंसक एवं शुभ गृह है , तथा बुध अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल
नक्षत्रों में बलवान होता है | बुध का हमारे शरीर में त्वचा – नाभि के निकट स्थल पर प्रभाव
होता है, तथा बुध ३२ वर्ष की आयु में ज्यादा प्रभावी होता है |
गुरु – द्वितीय/दुसरे , पंचम, नवम,दशम, एकादस भाव अथवा स्थान – बुध द्वितीय, पंचम,नवम,एवं एकदास भाव का स्वामी
होता है , एवं इससे हम विधा, बुद्दि,
बेटी,बेटा, पुस्तक लेखन
कार्य, आत्मा, मंत्र-तन्त्र, मंत्री, कर, भविष्य ज्ञान,श्रुति,स्मृति, शास्त्र ज्ञान,
लोटरी, पेट, गर्भ,
संतान, धन-धान्य, सोना-चांदी,
संपत्ति, कुटुंब-कबीला, वाणी,विधा, चेहरा, खान पान, भोजन पत्रिका, दाहिना नेत्र, रत्न,
समुद्र यात्रा, गुरु-आचार्य, साला-साली, तीर्थ-यात्रा, भाई
की पत्नी, जीजा,दोहता-दोहती, पौत्र-पौत्री ,भाग्य धर्म , आवक,
लाभ,प्रशंसा, बड़ा,
भाई, पुत्र वधु, बाँयां
कानबाँयां बाजु, व्यापार में लाभ-हानि, दामाद, पिता, राज्य, हुकूमत, पद प्राप्ति, पदोन्नति,
कर्म व्यापार, ट्रान्सफर, पूर्व जन्म, सास आदि के बारे में जानकारी प्राप्त होती है |
स्थिर कारक – धर्म, ब्राहमण, देवता, पुत्र, मित्र, कार्य, यज्ञ आदि कर्म, सोना,
पालकी,इत्यादि | गुरु
ज्ञान, सुख एवं कफ का अधिष्ठाता एवं कारक है |गुरु पुरुष एवं शुभ गृह है, तथा गुरु, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा-भाद्रपद
नक्षत्रों में बलवान होता है | गुरु हमारे शरीर में चर्बी व्
नासा/नाक के मध्य के क्षेत्र पर अधिकार होता है तथा यह
१६वे, २२वे, ४०वे, वर्ष में ज्यादा प्रभावी होता है |
शुक्र – सप्तम भाव अथवा स्थान - शुक्र सप्तम भाव का स्वामी होता है, एवं इससे हम
साझेदारी, यात्रा, पति-पत्नी, व्यापार,लौटरी, एवं दुसरे
बच्चे के गर्भ धारण की स्थिति के बारे में जानकारी प्राप्त होती है | स्थिर कारक - यौवन, सुन्दरता, ऐश्वर्य,
आभूषण, पत्नी, अन्य
स्त्री, काम-शास्त्र, सुकुमारता,
काव्य, नर्त्य -गान, सिनेमा,
टीवी, इत्यादि | शुक्र काम एवं
वात-कफ का अधिष्ठाता व् कारक होता है | शुक्र स्त्री एवं शुभ
गृह है, तथा शुक्र, कृतिका, रोहिणी,मृगशिरा नक्षत्रों में बलवान होता है |
शुक्र हमारे शरीर में वीर्य, नेत्रों तथा पैर
पर अधिकार व् प्रभावी होता है तथा शुक्र २५ से २८ वर्ष की उम्र में ज्यादा प्रभावी
होता है |
शनि – छटवे, आठवें,
द्वादश/बारहवें, एवं मतानुसार दशम भाव अथवा
स्थान – शनिछटवे, अष्टम, द्वादश/बारहवें, एवं मतानुसार दशम भाव अथवा स्थान का स्वामी होता है, एवं
इससे हम रोग, शत्रु, सौतेली माँ,
झगड़े-टंटे, मुक़दमा,कर्ज,
पानी से डर, जानवर
से भय, मामा-मौसी, स्त्रियों का
सौभाग्य, आयु, वसीयत, अनजाना धन प्राप्त होना, मृत्यु, क्लेश, अपवाद, विघ्न,
जहर से मृत्यु, कैद, ऊँचाई
से गिरना, दास, व्यव, खर्च, जासूसी पुलिस,दुःख,
अवसाद, पाप, दरिद्रता,
नुकसान, शत्रुता, कैद,
शयन-शुख, वाम-नेत्र, पैर,
गुप्त शत्रु, निंदक, आदि
के बारे में ज्ञान होता है | स्थिर कारक - यात्रा,
आयु, दास- दासी,वैराग्य, शस्त्र, केश-तेल,
भैंस, घोडा, ऊँट,
हाथी, शिल्प, नीलम,
दुःख, दर्द, रोग,
इत्यादि | शनि आयु एवं दुःख का अधिष्ठाता एवं कारक होता है |
शनि स्त्री नपुंसक एवं पाप गृह है | तथा शनि, पूर्वा-आषाढ़,
उत्तरा-आषाढ़, अभिजित, श्रवण,
नक्षत्रों में बलवान होता है | शनि हमारे शरीर में स्नायु व् पेट पर प्रभावी
होता है एवं यह ३६ से ४२ वर्ष की उम्र में ज्यादा प्रभावी होता है |
राहू – राहू एक छायाँ गृह है इसलिए
इसका कुंडली में कोई स्थान निश्चित नहीं है ये किसी भी भाव/स्थान जिसमें यह बैठा
होता है एवं जिस स्थान पर इसकी दृष्टी पड़ती है उन स्थानों पर प्रभाव डालता है |
स्थिर
कारक - प्रयाण (यात्रा या मृत्यु) समय, सर्प, रात्री, सट्टा, खोई हुई वास्तु, छिपा
हुआ धन का ज्ञान होता है | राहू पाप गृह है एवं उत्तर-भाद्रपद, रेवती, अश्वनी, भरणी नक्षत्रों में बलवान होता है |
राहू का पेट पर प्रभाव व अधिकार क्षेत्र होता है एवं यह ४२ से ४८ वर्ष की उम्र में ज्यादा प्रभाव दिखाता है |
केतु – केतु एक छायाँ गृह है इसलिए इसका
कुंडली में कोई स्थान निश्चित नहीं होता है ये किसी भी भाव/स्थान जिसमें यह बैठा
होता है एवं जिस स्थान पर इसकी दृष्टी पड़ती है उन स्थानों पर इसका प्रभाव होता है
| स्थिर
कारक - वर्ण, चर्मरोग,अतिशूल, दुःख, मूर्ख, होने आदि का ज्ञान होता है | केतु पाप गृह है एवं उत्तर-भाद्रपद, रेवती, अश्वनी, भरणी नक्षत्रों
में बलवान होता है | केतु का पेट पर प्रभाव व अधिकार
क्षेत्र होता है एवं केतु ४८ से ५४ वर्ष की आयु में ज्यादा प्रभावी होता है |
शुभ ग्रह :क्योंकि फलित ज्योतिष का
अस्तित्व ग्रहों का शुभ और अशुभ प्रभाव निर्धारित करता है , इसलिए इस पर ध्यान
देना अत्यधिक आवश्यक है | जिन ग्रहों की मूल त्रिकोण राशियाँ
लग्न से शुभ भावों में होती हैं , वह ग्रह जातक को शुभ फल
प्रदान करते हैं |
अशुभ ग्रह :जिन ग्रहों की मूल त्रिकोण राशियाँ लग्न
से अशुभ भावों में होती हैं वह अशुभ फल प्रदान करते हैं | छठा
,आठवां, व् बारहवां भाव जन्म कुंडली में अशुभ भावों के नाम से जाने जाते हैं |
जन्म लग्न
अशुभ ग्रह
मेष
बुध , राहू, केतु,
वृषभ
मंगल, गुरु,
शुक्र, राहू, व् केतु,
मिथुन
राहू व् केतु,
कर्क
गुरु, शनि, राहू व् केतु,
सिंह
चंद्रमा , राहू
व् केतु,
कन्या
सूर्य, शनि, मंगल, राहू, व् केतु,
तुला
बुध, राहू, व् केतु,
वृश्चिक
मंगल, शुक्र,
राहू व् केतु,
धनु
चन्द्रमा , राहू, व् केतु,
मकर
सूर्य , गुरु,
रहू व् केतु,
कुम्भ
चन्द्रमा , बुध,
राहू व् केतु,
मीन
सूर्य, शुक्र,
शनि, राहू व् केतु
केन्द्रेश – त्रिकोनेश योग फल
केन्द्रेश – त्रिकोनेश
योगफल :
१. लग्नेश – चतुर्थेश
सम्बन्ध से सुखी जीवन के बारे में जानकारी मिलती है |
२. लग्नेश – पंचमेश
सम्बन्ध से विद्वान् एवं बुद्दिमान होने की जानकारी मिलती है |
३. पंचमेश – दशमेश
सम्बन्ध से राजकार्यों में कुशलता के बारे में जानकारी मिलती है |
४. चतुर्थेश – पंचमेश
सम्बन्ध से बुद्धि के आधार पर आदमी अपना जीवन सुखी कर सकता है |
५. पंचमेश – सप्तमेश
सम्बन्ध से बुद्दिमान एवं समझदार पत्नी मिलती है |
६. चतुर्थेश – नवमेश
सम्बन्ध से आदमी के भाग्योदय से उसका जीवन सुखी होता है |
७. सप्तमेश – नवमेश
सम्बन्ध से भाग्यशाली पत्नी की प्राप्ति से सद्गृहस्थ बनकर जीवन सुखी बनाता है |
८. लग्नेश – नवमेश
सम्बन्ध से आदमी भाग्यमान बनता है |
९. दशमेश – लग्नेश
सम्बन्ध से शरीर सुख एवं राज्य सुख की प्राप्ति होती है |
१०. नवमेश – दशमेश
सम्बन्ध से भाग्य सुख एवं राज्य सुख प्राप्त होता है |
११. लग्नेश – सप्तमेश
सम्बन्ध से अच्छी पत्नी मिलती है |
विभिन्न ग्रहों की मूल त्रिकोण राशियाँ निम्न रूप से हैं |
ग्रह
मूल त्रिकोण
राशि
सूर्य
सिंह
चन्द्रमा
कर्क
मंगल
मेष
बुध
कन्या
गुरु
धनु
शुक्र
तुला
शनि
कुम्भ
ग्रहों की स्थिति की गणना हम ज्योतिर्विज्ञान के नियमों की सहायता से
करते हैं |
भावों अथवा स्थानों का स्वभाव
लग्न क्रियात्मक
अशुभ ग्रह
मेष
बुध
वृषभ
मंगल, गुरु,
शुक्र,
मिथुन
कोई नहीं
कर्क
गुरु, शनि,
सिंह
चंद्रमा
कन्या
सूर्य, शनि, मंगल
तुला
बुध
वृश्चिक
मंगल, शुक्र
धनु
चन्द्रमा
मकर
सूर्य , गुरु
कुम्भ
चन्द्रमा , बुध
मीन
सूर्य, शुक्र,
शनि
राहू एवं केतु सभी लग्नों के लिए क्रियात्मक अशुभ ग्रह हैं |
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